🌼1933 से 1945 : बाबा जुमदेवजी के जीवन का भूत-आत्माओं से संघर्ष और भगवत-प्राप्ति का मार्ग

🌼1933 से 1945 : बाबा जुमदेवजी के जीवन का भूत-आत्माओं से संघर्ष और भगवत-प्राप्ति का मार्ग

🌼1933 से 1945 : बाबा जुमदेवजी के जीवन का भूत-आत्माओं से संघर्ष और भगवत-प्राप्ति का मार्ग

🌼 1933 की शुरुआत और घर बदलने का निर्णय

सन 1933, ठुब्रीकर परिवार पुराने स्थान पर रह रहा था।
परंतु मोहल्ले में पड़ोसियों से लगातार झगड़े और कलह होने के कारण
पूरा परिवार मानसिक रूप से परेशान हो गया था।

इसलिए अंततः उन्होंने दूसरे स्थान पर नया घर खरीदने का निर्णय लिया।

नागपुर के रंभाजी रोड, टिमकी में,
रामेश्वर तेलघाणी के पीछे स्थित झुनके सावकार का घर बिक्री के लिए था।
ठुब्रीकर भाइयों ने वह घर खरीदने का विचार किया
और घर-मालिक के साथ सौदा पक्का कर लिया।


😨 घर की भूतबाधा की अफवाह

लेकिन उस घर को लेकर मोहल्ले में अलग ही चर्चा थी।

लोग कहते थे—
“यह घर शैतानी है… यह भुतहा घर है!”

क्योंकि एक मुसलमान व्यक्ति उस घर में कदम रखते ही अचानक मर गया था।
इस घटना के कारण मोहल्ले के लोग ठुब्रीकर परिवार को
बार-बार समझा रहे थे—
“यह घर मत खरीदो!”

लेकिन बाबा जुमदेवजी का परिवार हिंदू परंपरा के अनुसार
गुरुमार्गी था।
उनके गुरु थे—
श्री यादवराव महाराज, धापेवाड़ा।

उन्हें विश्वास था कि—
जहाँ होम, हवन और पूजा होती है, वहाँ कोई भूत-पिशाच नहीं टिक सकता।

इसी विश्वास के आधार पर
उन्होंने वह घर खरीद लिया।


🏠 नए घर में प्रवेश और अस्वस्थता की शुरुआत

नए घर में रहने से पहले
गुरुमंत्र के अनुसार होम-हवन और पूजा-अर्चा की गई।

संपूर्ण परिवार खुशी-खुशी उस घर में रहने लगा।

लेकिन कहते हैं—
“आग से निकलकर धुएँ में फँसना।”
ठुब्रीकर परिवार के साथ भी यही हुआ।

घर में कदम रखते ही एक के बाद एक परेशानियाँ बढ़ने लगीं—

  • लोगों को अजीब-अजीब सपने आने लगे
  • खाना खाते समय सीढ़ियों पर किसी के चलने की आवाज आती
  • रातभर घर के सामने कुत्ते बिलखते
  • छोटे बच्चे बीमार पड़ते और खेलते-खेलते कुत्ते की तरह चिल्लाकर मर जाते

इन भयानक घटनाओं के कारण
परिवार पूरी तरह भयभीत और दुखी हो गया।


🔍 लगातार उपाय, लेकिन समाधान नहीं

बाबा के पिता श्री विठोबाजी ने अनेक उपाय किए —

  • डॉक्टरों से इलाज
  • गुरुविद्या अनुसार होम-हवन
  • मांत्रिक, तांत्रिकों द्वारा उपाए
  • नवस, पूजा, और कई धार्मिक विधियाँ

लेकिन कुछ भी काम नहीं आया।
हजारों रुपये खर्च होने के बाद भी
घर में शांति नहीं मिली।

भुताटकी के कारण
परिवार के कई लोगों की जान तक चली गई।


🙏 बाबा जुमदेवजी का हनुमानजी पर विश्वास

इस समय बाबा जुमदेवजी छोटे ही थे,
लेकिन वे हनुमानजी की सेवा किया करते थे।
उन्हें हनुमान चालीसा पूरी याद थी।

हनुमान चालीसा में साफ लिखा है—

“जहाँ हनुमान चालीसा का पाठ होता है, वहाँ भूत-पिशाच पास नहीं आते।”

इसलिए बाबा रोज दो-तीन बार हनुमान चालीसा पढ़ते।
वे हनुमानजी से प्रार्थना करते—

“हे बाबा हनुमानजी, कुछ योग दीजिए,
और यह दुख दूर कीजिए।”

लेकिन फिर भी घर में शांति नहीं थी।
छोटे बच्चे बीमार पड़ते,
अजीब घटनाएँ होती रहतीं।


12 वर्षों का भुताटकी का खेल (1933–1945)

इस घर की भूतबाधा करीब 12 साल तक चली।
1933 से लेकर 1945 तक परिवार का जीवन भय, दुख और अनिश्चितता में बीता।

नवंबर 1945 में भी
बाबा रोज दो-तीन बार हनुमान चालीसा पढ़ा करते थे।

उसी समय एक अद्भुत घटना घटी…


😱 मारोतराव का अनुभव

एक दिन बाबा के छोटे भाई मारोतराव
घर में अकेले सो रहे थे।
बाबा छपरी में बैठे थे।

अचानक मारोतराव उठकर बैठ गए।

बाबा ने पूछा —
“तू क्यों उठ गया?”

मारोतराव बोले —
“मेरे पैर किसी ने हिलाए…
किसी ने मुझे उठाया!”

बाबा हैरान थे, क्योंकि घर में और कोई था ही नहीं।

यह घटना बाबा के मन में और प्रश्न पैदा कर गई।


🔱 परमेश्वरी कृपा का मंत्र

इसी समय,
हनुमानजी से की गई प्रार्थना मानो फलित हुई।

एक साधारण सा व्यक्ति बाबा के घर आया
और बोला—
“तू कहाँ जा रहा है?”

बाबा ने सारी बात बताई।

तब उस व्यक्ति ने कहा—

“मेरे पास परमेश्वरी कृपा प्राप्त करने का एक मंत्र है।
मुझे यह मंत्र एक संन्यासी ने दिया था।
इसके विधिपूर्वक प्रयोग से
हर प्रकार का दुख मिट जाता है।
मैंने इस मंत्र से कई लोगों की पीड़ा दूर की है।”

वह व्यक्ति मौदा गाँव का था।
उसने वह मंत्र लिखकर बाबा को दे दिया।


🌸 मंत्र का प्रभाव

उस मंत्र से तैयार किया गया तीर्थ
मारोतराव को पिलाया गया।
इसके बाद उन्हें अद्भुत शांति और आराम महसूस हुआ।

यह परिणाम देखकर
बाबा के मन में एक विचार आया—

“हममें से किसी को
यह मंत्र विधि के साथ करना चाहिए,
तभी यह दुख दूर होगा।”

यही वह क्षण था
जब बाबा जुमदेवजी को
भगवत-प्राप्ति का मार्ग स्पष्ट होने लगा।


🌼 निष्कर्ष – भगवत प्राप्ति का मार्ग मिला

इस प्रकार, मात्र 24 वर्ष की आयु में
बाबा जुमदेवजी को
भगवत-साधना का मार्ग प्राप्त हुआ।

1933 से 1945 के बीच
परिवार ने गहन दुख, भय और कठिनाइयाँ झेली।

लेकिन इन्हीं दुखों से
हनुमान चालीसा, प्रार्थना, श्रद्धा और परमेश्वरी कृपा के माध्यम से
आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत हुई।


🙏 अंतिम विचार

यह कथा हमें सिखाती है—

  • चाहे संकट कितने भी बड़े हों,
  • चाहे समय कितना भी कठोर हो,

श्रद्धा + प्रार्थना + निरंतर प्रयास
हमेशा भगवत कृपा तक ले जाते हैं।

बाबा जुमदेवजी ने
अपने जीवन के दुखों के भीतर से ही
भगवत-प्राप्ति का मार्ग खोजा
और आगे चलकर अनगिनत लोगों को
दुःखमुक्त जीवन का मार्ग दिखाया।

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