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🌟 भूमिका
मानवधर्म के आध्यात्मिक इतिहास में कई चमत्कारी घटनाएँ अमर हो चुकी हैं,
लेकिन इन सबमें एक घटना ऐसी है, जिसने एक भगवन्त का पहला गुण प्रत्यक्ष रूप में संसार के सामने प्रकट किया।
बाबा जुमदेवजी की परमेश्वरप्राप्ति के शुरुआती तीन महीनों में, जब बाबा पूर्ण विदेही अवस्था में थे और परमात्मा में लीन थे, तभी उनके माध्यम से प्रकट होती हुई दिव्य शक्ति का वास्तविक अनुभव लोगों को मिलने लगा।
इन महीनों में जो घटनाएँ घटीं, उनमें एक भगवन्त का पहला गुण सर्वाधिक अद्भुत था—
जिसने शांताबाई के मृतवत पड़े बच्चे का भाग्य बदल दिया।
आज इस ब्लॉग में हम उसी पहली दिव्य अनुभूति की गहराई से सच्ची कथा जानेंगे।
⭐ १. परमेश्वरप्राप्ति के तीन महीने – बाबा पूर्ण विदेही अवस्था में
बाबाओं ने जब एक भगवन्त की प्राप्ति की, उसके बाद लगभग तीन महीने वे पूर्णतः विदेही अवस्था में रहे।
शरीर यहाँ था, पर चेतना परमात्मा में विलीन थी।
वे कम बोलते, कम खाते, और संसार के प्रति जैसे अनभिज्ञ हो गए थे।
यही वह अवस्था थी, जहाँ परमेश्वर ने उन्हें आंतरिक जागृति प्रदान की—
जो आगे चलकर सम्पूर्ण मानवधर्म की आधारशिला बनी।
⭐ २. शांताबाई का दुःख – जो हनुमान प्राप्ति से भी दूर नहीं हुआ
रंगारी समाज की शांताबाई पर भूत-पीड़ित होने की चर्चा थी।
वर्षों से वह पीड़ा झेल रही थी।
कई साधु-संतों ने प्रयास किए, लेकिन कोई भी उसे राहत न दिला सका।
बाबाओं ने उस समय हनुमानजी की प्राप्ति की हुई थी,
फिर भी शांताबाई की पीड़ा दूर नहीं हुई।
यहीं उन्हें परमसत्य का बोध हुआ—
“मनुष्य का कोई भी दुःख — अंत में केवल परमेश्वर ही दूर कर सकता है।”
यह समझकर उन्होंने एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रतिज्ञा की—
👉 “आज से मैं किसी देवता को नहीं मानूँगा। मेरा एकमात्र आधार—परमेश्वर।”
यह क्षण उनके जीवन का आध्यात्मिक मोड़ था।
और इसी के बाद उन्हें एक भगवन्त की पूर्ण प्राप्ति हुई।
प्रतिज्ञा के तुरंत बाद शांताबाई की पीड़ा भी समाप्त हो गई।
⭐ ३. तीन महीनों की दूसरी और बड़ी घटना – मृत पड़ा बच्चा और घर का मातम
इसी दौरान शांताबाई के घर में एक और बड़ा संकट आया।
एक दिन उसका छोटा बच्चा (नाति) अचानक मृतवत हो गया।
न साँस, न हलचल—पूरा घर मातम में डूब गया।
बच्चे की दादी रोती-बिलखती बाबाओं के घर पहुँची।
पर बाबा वहाँ नहीं थे—
वे अपने बड़े भाई बाळकृष्णजी के घर थे।
वह स्त्री मारोतराव (बाबाओं के छोटे भाई) के सामने फूट-फूटकर रोई।
मारोतराव का हृदय पिघल गया।
वे तुरंत बाबाओं के पास पहुँचे और बोले—
“बाबा, एक औरत बहुत रो रही है… बहुत बड़ी मुसीबत में है। कृपया चलिए।”
⭐ ४. निराकार अवस्था में बाबाओं का भान — स्त्री की परछाई भी खतरनाक
बाबाओं ने उस समय एक अत्यंत महत्वपूर्ण संकेत दिया—
👉 “मारोतराव, उस औरत की छाया मुझपर मत पड़ने देना। मैं निराकार अवस्था में हूँ। छाया पड़ गई तो जीवन संकट में पड़ जाएगा।”
इसलिए उस स्त्री को दूर खड़ा किया गया।
बाबा अपने आसन पर बैठ गए।
⭐ ५. “कहो बाई…” – और दिव्य संवाद की शुरुआत
बाबा ने शांत स्वर में पूछा—
“कहो बाई, क्यों आई हो? क्यों रो रही हो?”
वह बोली—
“बाबा, आप जानिए… मेरा दुख आपको समझ में आएगा…”
बाबा मौन रहे—
लेकिन उन्हें उसके दुःख का पूरा ज्ञान था।
कुछ क्षणों बाद अचानक बाबाओं के मुख से दिव्य शब्द निकले—
🌟 ६. “नाथ गोरख, हाज़िर हो जाओ।”
बिना देरी उत्तर आया —
“हाज़िर बाबा।”
फिर आदेश—
“यमराज को बुलाकर लाओ।”
कुछ देर बाद बाबा बोले—
“यमराज आ गए।”
“हाँ बाबा, मैं आ गया।”
⭐ ७. मृत्यु से सामना – यमराज और बाबा का संवाद
इसके बाद अद्भुत संवाद हुआ—
बाबा बोले—
“उस बच्चे के गले में फाँसा डाला है। तुरंत निकालो। नहीं तो तेरी यमपुरी उलट दूँगा।”
यमराज काँप उठे—
“बाबा, अभी निकालता हूँ। कृपा कर क्रोध मत कीजिए।”
बाबा कठोर स्वर में—
“अभी जाओ!”
कुछ क्षण शांति…
🌟 ८. चमत्कार! बच्चा जीवित हो गया
थोड़ी देर बाद बाबा ने कहा—
“बाई, तेरा बच्चा उठकर बैठ गया है। जाओ… उसे ले आओ।”
वह स्त्री दौड़कर घर गई—
और चमत्कार सच था!
मृतवत पड़ा बच्चा जीवित होकर बैठा था।
पूरा परिवार खुशी के आँसुओं में डूब गया।
⭐ ९. एक भगवन्त का पहला गुण – पहली प्रकट शक्ति
इस घटना में दुनिया ने “एक भगवन्त का पहला गुण” देखा—
👉 परमेश्वर की शक्ति कैसे पीड़ित पर कृपा करती है
👉 मृत्यु भी कैसे रुक जाती है
👉 एक सेवक आदेश से जीवनदान कैसे दे सकता है
यह था—
“एक भगवन्त का पहला गुण” — पहला, प्रत्यक्ष, दिव्य चमत्कार।
⭐ १०. इस अनुभव से मिलने वाली जीवन की अनमोल सीखें
(“एक भगवन्त का पहला गुण” से उभरकर सामने आई दिव्य शिक्षाएँ)
✔ १. परमेश्वर ही अंतिम शक्ति — सभी प्राप्तियों से परे सत्य
“एक भगवन्त का पहला गुण” हमें सबसे पहले यह गहरी समझ देता है कि चाहे मनुष्य कितनी भी सिद्धियाँ क्यों न प्राप्त कर ले, चाहे कितनी भी देवप्राप्ति क्यों न हो—
अंतिम अधिकार केवल परमेश्वर का ही होता है।
हनुमान प्राप्ति के बाद भी शांताबाई का दुःख दूर नहीं हुआ।
लेकिन जब बाबा ने केवल परमेश्वर को शरण माना, तभी मार्ग खुला और संकट दूर हुआ।
👉 जीवन और मृत्यु की अंतिम डोर केवल परमेश्वर के हाथों में होती है।
इसलिए यह दिव्य अनुभव सिखाता है कि—
मनुष्य को अंत में केवल परमेश्वर की ही शरण लेनी चाहिए, क्योंकि वही सर्वशक्तिमान है।
✔ २. पूर्ण शरणागति ही चमत्कारों का मूल
इस पूरे प्रसंग का सबसे प्रभावशाली क्षण था—
बाबाओं की वह प्रतिज्ञा:
“अब मैं किसी देवता को नहीं मानूँगा, केवल परमेश्वर को ही मानूँगा।”
यही वह पवित्र क्षण था जहाँ से चमत्कारों का प्रवाह आरंभ हुआ।
यही प्रतिज्ञा “एक भगवन्त का पहला गुण” प्रकट होने का आधार बनी।
👉 पूर्ण शरणागति = परमेश्वर की कृपा का द्वार
जब मन पूरी तरह परमेश्वर के सामने समर्पित हो जाता है, तब असंभव भी संभव हो जाता है।
✔ ३. दुःख देखकर मन में उठने वाली करुणा — सच्चा सेवकत्व
“एक भगवन्त का पहला गुण” केवल चमत्कार नहीं दिखाता,
बल्कि करुणा का वास्तविक रूप भी सामने लाता है।
मारोतराव ने जब उस रोते हुए स्त्री को देखा, तो बिना विलंब किए बाबा तक पहुँचे।
उनकी करुणा ही इस पूरे प्रसंग का पहला मानव आधार थी।
जहाँ मन में करुणा होती है—
वहीं परमेश्वर की कृपा स्वतः प्रवाहित होने लगती है।
👉 करुणा = परमेश्वर की कृपा का प्रथम स्पर्श
यही सच्चे सेवकत्त्व की पहचान है।
✔ ४. परमेश्वर की कृपा हो तो मृत्यु की दिशा भी बदल जाती है
इस अद्भुत घटना ने संसार को यह भी सिखाया कि—
जब परमेश्वर की कृपा होती है, तब प्रकृति के नियम भी झुक जाते हैं।
मृतवत पड़ा बच्चा पलभर में उठकर बैठ जाता है।
यह न तो साधारण घटना थी,
न ही किसी सिद्धि का प्रभाव—
बल्कि “एक भगवन्त का पहला गुण” का सीधा, प्रत्यक्ष प्रकट होना था।
👉 चमत्कार नियमभंग नहीं—
यह परमेश्वर द्वारा किया गया “दैवी नियमन” है।
इस अनुभव ने सिद्ध कर दिया कि—
मनुष्य कितनी ही शक्ति धारण कर ले,
लेकिन जीवन और मृत्यु का अंतिम निर्णय तभी बदलता है जब परमेश्वर स्वयं हस्तक्षेप करते हैं।
✨ सार
“एक भगवन्त का पहला गुण” केवल एक चमत्कार नहीं था —
यह एक दिव्य संदेश था जो सिखाता है कि—
- परमेश्वर ही अंतिम शक्ति है
- उसकी शरण में आने से ही कृपा का द्वार खुलता है
- करुणा ही कृपा का पहला आधार है
- और जब परमेश्वर चाहें, तो मृत्यु भी अपनी दिशा बदल देती है




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