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🌟 प्रस्तावना
मानव धर्म आधुनिक भारत के आध्यात्मिक इतिहास का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अध्याय है।
सन 1949, महाशिवरात्रि के पवित्र पर्व पर
महानत्यागी बाबा जुमदेवजी ने इस धर्म की आधारशिला रखी।
यह धर्म किसी जाति–पंथ, परंपरा या वर्ग तक सीमित नहीं,
बल्कि संपूर्ण मानवजाति के लिए जीने का मार्ग है।
मानव धर्म का मूल उद्गम
मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के पचमढ़ी में
बाबा को प्राप्त हुए आध्यात्मिक अनुभव से मानला जातो।
सातपुड़ा पर्वत श्रृंखला से घिरे इस स्थान पर
बाबा को प्राप्त दिव्य अनुभूति ने
मानव धर्म की पायाभरणी केली।
✴️ पचमढ़ी – आध्यात्मिक जागृति का स्थान
पचमढ़ी महादेव के पवित्र देवस्थान के लिए प्रसिद्ध है।
हर साल हजारों श्रद्धालु यहाँ यात्रा करते,
विशेष रूप से महाशिवरात्रि यात्रा अत्यंत भव्य होती।
यात्रिक —
- नए वस्त्र पहनते,
- जटा बढ़ाते,
- त्रिशूल लेकर चलते,
- अनेक नवस (मनोकामनाएँ) करते।
लेकिन बाबा जुमदेवजी ने इस यात्रा के लिए कुछ अलग संकल्प किए —
- नए वस्त्र नहीं पहनना
- किसी भी देवता के सामने नहीं झुकना
- केवल एक परमेश्वर की उपासना करना
- देवालय की मूर्तियों के बजाय प्रकृति के दर्शन लेना
ये संकल्प मानव धर्म के मूल सिद्धांत का प्रथम संकेत थे।
🚆 पचमढ़ी की यात्रा
1949 में बाबा अपने दो भाई —
नारायणराव, मारोतराव,
पुतने केशवराव,
और प्रथम सेवक गंगाराम रंभाड
के साथ पचमढ़ी यात्रा पर निकले।
साधारण फराळ (सादा भोजन) लेकर
वे नागपुर से रेल द्वारा यात्रा कर रहे थे।
यात्रा में कई चमत्कारिक घटनाएँ हुईं —
1️⃣ रस्ताअडवणारी स्त्री
मार्ग में एक स्त्री विचित्र हरकतें करती हुई रास्ता रोककर खड़ी रही।
बाबा ने आदेश दिया —
“हनुमानजी के नाम पर फुंकर मारो।”
फुंकर मारते ही स्त्री बेहोश होकर गिर गई
और मार्ग साफ हो गया।
2️⃣ यात्रियों को तेज बुखार
रेल में कई यात्रियों को तीव्र बुखार था।
बाबा ने गंगारामजी से कहा —
“उनके गाल पर थप्पड़ मारो।”
थप्पड़ पड़ते ही बुखार उतर गया।
3️⃣ हमाल का भारी बोझ
एक हमाल का सिर पर रखा सामान भारी था।
बाबा के आदेश पर
गंगारामजी ने फुंकर मारी,
और बोझ हल्का हो गया।
हमाल खुशी-खुशी सामान लेकर आगे गया।
❤️ सेवाभाव के प्रसंग
गड चढ़ते समय
रस्त्याच्या कडेला एक स्त्री रडत दिसली।
उसके चार बच्चे तेज बुखार से तड़प रहे थे।
यात्रिक बिना ध्यान दिए आगे बढ़ रहे थे।
बाबा बोले —
“बच्चों के गाल पर थप्पड़ मारो।”
थप्पड़ पड़ते ही सभी बच्चे उठकर स्वस्थ हो गए।
यात्रा में मृतदेहों के ढेर दिखाई दिए।
बाबा ने हनुमानजी के नाम से फुंकर मारी
और यात्रियों ने देखा कि—
उन आत्माओं के प्रकाश-रूप किरणें मुक्त होकर आकाश की ओर उठ गईं।
🔥 पचमढ़ी में प्राप्त अनुभूति
गड पर पहुँचने के बाद
बाबा मंदिर में नहीं गए।
वे पास बैठकर
एक ही परमेश्वर के नाम से ज्योति प्रज्वलित की।
उन्हें कोई मूर्ति-दर्शन नहीं हुआ,
परंतु अंतःकरण में परमेश्वर का अस्तित्व प्रकट हुआ।
उसी क्षणी उन्हें सत्य उमगले —
👉 “परमात्मा एक है।”
यही मानव धर्म का मूल बीज था।
🎶 वापसी का मार्ग — भगवान अंतःकरण में
गड उतरते समय बाबा गाते हुए चल रहे थे।
लोगों ने पूछा —
“आप क्यों गा रहे हैं?”
बाबा उत्तरले —
👉 “हम परमेश्वर को साथ लेकर चल रहे हैं।
तुम उसे गड पर ही छोड़ आए, इसलिए शांत हो।
हम आनंद में हैं, क्योंकि भगवान हमारे भीतर है.”
बाबा ने समझाया—
भगवान को चाहिए —
- स्वच्छ मन
- सत्य आचरण
- सरलता
- और निर्मल भावना
बाह्य दिखावा, कपड़े, शस्त्र—
इनका ईश्वर से कोई संबंध नहीं।
🌍 मानव धर्म की औपचारिक स्थापना
पचमढ़ी में प्राप्त इस दिव्य अनुभव के बाद
बाबा नागपुर लौटे।
1949, महाशिवरात्रि के दिन
उन्होंने औपचारिक रूप से
मानव धर्म की स्थापना की।
इसके बाद बाबा जुमदेवजी
मानव धर्म के संस्थापक कहलाए —
एक ऐसा धर्म
जो कर्म, सत्य, सेवा और मानवता पर आधारित है—
विधि-विधान, जात-पंथ या आडंबरों से परे।
🪷 निष्कर्ष
पचमढ़ी का अनुभव
मानव धर्म का वास्तविक उद्गम था।
यहीं बाबा को सत्य प्रकट हुआ —
👉 “मानव ने मानव जैसा आचरण करना चाहिए।”
उनका उपदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है—
सत्य, करुणा, सेवा और एकता पर आधारित जीवन-पद्धति
पूरी मानवजाति के लिए मार्गदर्शक है।
🙏 महानत्यागी बाबा जुमदेवजी
इस देश में मानव धर्म के संस्थापक हैं।




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