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🌼 प्रस्तावना
भारत के आध्यात्मिक और सामाजिक इतिहास में
महानत्यागी बाबा जुमदेवजी का नाम अत्यंत सम्मान से लिया जाता है।
सत्य, ईमानदारी, परमार्थ, त्याग और समाजसेवा
इन गुणों के कारण उन्होंने एक सामान्य गृहस्थ होकर भी
अपना जीवन असामान्य और प्रेरणादायी बनाया।
👶 जन्म और बाल्यकाल
बाबा जुमदेवजी का जन्म
3 अप्रैल 1921 को नागपुर के गोळीबार चौक परिसर में स्थित
ठुब्रीकर परिवार में हुआ।
यह स्थान अंग्रेजों के विरुद्ध हुए
स्वतंत्रता संग्राम के “ध्वज सत्याग्रह” के लिए प्रसिद्ध था।
गरीबी और कठिन परिस्थितियों वाले इस परिवार में
बाबा चौथे क्रम के संतान थे।
बचपन में उनका नाम “जुम्मन” था।
कम उम्र से ही उनके तेजस्वी व्यक्तित्व,
उदार स्वभाव और हनुमान चालीसा पर उनकी गहरी भक्ति
सबके ध्यानात येत असे।
📚 शिक्षा और प्रारंभिक अनुभव
घर की आर्थिक स्थिति कठिन होने के कारण
उनकी शिक्षा केवल चौथी कक्षा तक ही हो पाई।
इसके बाद 12 वर्ष की उम्र में
उन्होंने वडिलोपार्जित बुनकर (विणकरी) का व्यवसाय शुरू किया।
युवा उम्र में उन्होंने अखाड़ों में कुश्ती लड़ी
और अपनी शक्ति, परिश्रम तथा कौशल्य के कारण
उन्हें मोहल्ले में “पहेलवान” के रूप में पहचान मिली।
💍 विवाह और जिम्मेदारियाँ
सन 1938 में महानत्यागी बाबा जुमदेवजी का विवाह
वाराणसीबाई से हुआ।
लग्नानंतर, केवळ 19 वर्ष की उम्र में
उन्होंने बुनकरी का पेशा छोड़कर
सेठ केसरीमल के सोने-चांदी के दुकान में नौकरी स्वीकार की।
उनकी ईमानदारी अनेक प्रसंगों में प्रमाणित हुई।
एक बार उन्हें 10 तोले का सोने का हार मिला।
परंतु बिना किसी लोभ के
उन्होंने वह हार मालिकों को वापस कर दिया।
इस घटना के बाद लोग उन्हें
“ईमानदार जुमदेवजी” कहकर सम्मान देने लगे।
🙏 सामाजिक एवं आध्यात्मिक कार्य
नौकरी और गृहस्थ जीवन संभालते हुए भी
बाबा का मन समाजसेवा की ओर आकर्षित रहता था।
उन्होंने सहकारी सिद्धांत पर कई संस्थाएँ बनाई—
- बैंक
- बहुउद्देशीय ग्राहक भंडार
- दूध डेयरी
- मानव मंदिर
विशेष बात यह कि
इन संस्थाओं का लाभ उन्होंने
कभी अपने घर या परिवार के लिए नहीं लिया।
उनका उद्देश्य केवल
जनकल्याण और सेवा था।
✴️“महानत्यागी” पदवी
गृहस्थ होते हुए भी
बाबा ने परमार्थ, सेवा और त्याग का अद्भुत उदाहरण पेश किया।
“आपल्यासारखे करिती तात्काळ
नाही काळवेळ तया लागी”
(अर्थ: जो करना है, तुरंत करो; सेवा में विलंब नहीं होना चाहिए)
इस भाव से उन्होंने रोजमर्रा में
अपने कर्म और त्याग सिद्ध किए।
उनके शिष्यों ने उन्हें दिया हुआ
“महानत्यागी” यह सम्मान
वास्तव में उनके जीवन का खरा गौरवच आहे।
🌟 आज का कार्य और प्रेरणा
सत्तर वर्ष की आयु पार करने के बाद भी
बाबा लगातार समाजजागृती और मानवधर्म के प्रचार में सक्रिय रहे।
“देता वही है जो मेहनत से करता है”
इस सिद्धांत के अनुसार
भगवान ने उन्हें उनके काम का फल दिया।
उनका जीवन आज भी हमें सीख देता है—
👉 गरीबी से उठकर भी
सत्य और ईमानदारी से समाजसेवा की जा सकती है।
👉 अध्यात्म + सेवा = सच्चा मानवधर्म
👉 एक सामान्य गृहस्थ भी
अपने तप, सेवा और सत्यनिष्ठा से
असाधारण बन सकता है।
✨निष्कर्ष
महानत्यागी बाबा जुमदेवजी का जीवन
सत्य, ईमानदारी, सेवा और त्याग का जीवंत प्रतीक है।
उनकी जीवन यात्रा हमें सिखाती है—
साधा गृहस्थ असूनही,
मानवतेची सेवा करून
महानता प्राप्त करता येते।
🙏 महानत्यागी बाबा जुमदेवजी का जन्म और जीवन
हम सभी के लिए आदर्श और मार्गदर्शक है।




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