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🌼 प्रस्तावना
महान त्यागी बाबा जुमदेवजी ने जब एक परमेश्वर की प्राप्ति की,
उस दैवी शक्ति का लाभ अनेक गरीब, दुखी और कष्टों से जूझ रहे लोगों को मिलने लगा।
बाबा निष्काम भाव से लोगों के जीवन के —
शारीरिक, आर्थिक और मानसिक दुःख दूर करने लगे
और उन्हें सुख, शांति और संतोष का मार्ग दिखाने लगे।
इस पथ पर आगे बढ़ते हुए कई लोगों ने इस शक्ति का अनुभव किया
और समय के साथ वे भी उपासक, अर्थात् सेवक बनते गए।
इस मार्ग पर पहला सेवक बनने का श्रेय
श्री गंगारामजी रंभाड को जाता है।
🏠 गंगारामजी रंभाड की पृष्ठभूमि
गंगारामजी नागपुर के टिमकी क्षेत्र में,
बाबा जुमदेवजी के ही मोहल्ले में रहते थे।
बाबा के घर के पास ही गडीकर का एक क्लब था
जहाँ मोहल्ले के लोग शाम को कैरम और अन्य खेल खेलने एकत्र होते थे।
बाबा भी खाली समय में वहाँ जाते और
परमेश्वर, अध्यात्म और मानवधर्म पर गहन चर्चा करते थे।
इन चर्चाओं से लोगों के मन में जागरण और समझ पैदा होती थी।
गंगारामजी भी इन चर्चाओं में शामिल होते
और धीरे-धीरे उनके मन पर इसका गहरा असर हुआ।
😨 भूतबाधा और कष्टदायक अवस्था
गंगारामजी का परिवार “गुरुमार्गी” था।
उनके गुरु को लोग “सोनारबाबा” के नाम से जानते थे।
फिर भी, गंगारामजी को भूतबाधा का अत्यंत त्रास होता था—
कभी शरीर में पलित का प्रवेश,
कभी व्याकुलता,
कभी मानसिक असंतुलन…
गुरु होने के बावजूद भी
वे इस त्रास से मुक्त नहीं हो पाए।
इससे गंगारामजी का
गुरु और ईश्वर पर से विश्वास डोलने लगा।
उनके मन में तीव्र पीड़ा थी —
“जब ये गुरु मेरे दुःख दूर नहीं कर सकते,
तो ये गुरु किस काम के?
क्या सच में दुनिया में ईश्वर है भी?”
उन्होंने समाज के कई अंधविश्वासी उपाय किए,
डॉक्टरों के इलाज किए,
पर कोई फायदा नहीं हुआ।
उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती गई
और मन में अंधकार छा गया।
🕉️ बाबा जुमदेवजी से हुई चर्चा
एक दिन क्लब में चर्चा के दौरान
गंगारामजी ने बाबा से सीधा प्रश्न किया —
“क्या इस दुनिया में परमेश्वर है ही नहीं?
अगर है… तो मुझे दिखाइए।”
बाबा ने शांत भाव से उत्तर दिया —
👉 “परमेश्वर निश्चित रूप से है।
वह दिखाई नहीं देता,
पर आत्मज्योति के रूप में हमेशा विद्यमान रहता है।”
गंगारामजी ने अपना कष्ट बताया —
“मैं गुरुमार्गी हूँ, पर मेरी भूतबाधा नहीं जाती।
अगर परमेश्वर है, तो मुझे वह दिखाई क्यों नहीं देता?”
तब बाबा ने तुरंत कहा —
👉 “चलो, अभी मेरे साथ घर चलो।
मैं तुम्हें परमेश्वर दिखाता हूँ।”
गंगारामजी आश्चर्यचकित हुए,
पर बाबा के साथ घर गए।
🔥 परमेश्वर दर्शन का दिव्य अनुभव
घर पहुँचकर बाबा ने उनसे कपूर और अगरबत्ती लाने को कहा।
बाबा ने कपूर जलाया,
और जैसे ही ज्योति बुझी —
गंगारामजी के आँखों से आँसू स्वतः बहने लगे।
वे अनियंत्रित होकर रोने लगे।
बाबा ने समझाते हुए कहा —
“गंगारामजी, यह आत्मज्योति है।
जब ज्योति बुझी,
तो आपकी अंतरात्मा की ज्योति प्रकट हुई,
इसीलिए आप रोने लगे।
यही परमेश्वर है —
जो हर मनुष्य में आत्मा रूप से विद्यमान है।”
इस अनुभव से
गंगारामजी के भीतर गहरी शांति, साक्षात्कार और भावजागृति हुई।
✨ आत्मज्योति और परमेश्वर की वास्तविक व्याख्या
बाबा जुमदेवजी हमेशा कहते थे —
- परमेश्वर निराकार है।
- उसे कोई आँखों से नहीं देख सकता।
- वह हर मनुष्य के भीतर आत्मरूप से प्रकट रहता है।
- मोह, माया, क्रोध और अहंकार मनुष्य की आत्मज्योति ढँक देते हैं।
- जब आत्मा जाग्रत होती है, तब परमेश्वर का साक्षात्कार होता है।
बाबा ने स्वयं
विश्व जितने बड़े एक दिव्य नेत्र का दर्शन प्राप्त किया था।
उसी में उनका परमेश्वर अनुभव था—
अदृश्य, अनंत, और अनन्त शक्ति का रूप।
🙏 प्रथम सेवक की भूमिका
इस अनुभव के बाद
गंगारामजी का ईश्वर पर विश्वास फिर से जाग उठा।
उन्होंने बाबा जुमदेवजी को अपने गुरु के रूप में स्वीकार किया
और इस मार्ग के प्रथम सेवक बन गए।
उनके इस अनुभव से
आने वाले वर्षों में हजारों लोगों को दिशा मिली।
गंगारामजी के माध्यम से
बाबा के विचार और मानवधर्म का संदेश समाज में फैलने लगा।
🌺 निष्कर्ष
गंगारामजी रंभाड का जीवन-प्रवास
अंधविश्वास, पीड़ा और शंका से शुरू होकर
श्रद्धा, आत्मज्योति और सेवा भाव में परिवर्तित हुआ।
वे महान त्यागी बाबा जुमदेवजी के प्रथम सेवक बने
और उन्होंने अपने जीवन से सिद्ध किया —
👉 परमेश्वर बाहर नहीं,
वह प्रत्येक मनुष्य के भीतर आत्मज्योति के रूप में विद्यमान है।
🙏 प्रथम सेवक गंगारामजी रंभाड का जीवन
आज भी सभी सेवकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।





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