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✨ प्रस्तावना
महान त्यागी बाबा जुमदेवजी — जिनका सम्पूर्ण जीवन
परमेश्वर प्राप्ति, तप, त्याग और भक्ति का अद्वितीय उदाहरण है।
आध्यात्मिक साधना केवल पूजा-पाठ नहीं होती।
यह मन, श्रद्धा और दृढ़ निश्चय का सर्वोच्च संगम है।
दुनिया में हजारों साधना-मार्ग हैं, पर कुछ ही साधक अत्यंत कठिन मार्ग चुनते हैं और ঈश्वर की दिव्य कृपा का अनुभव करते हैं।
आज हम पढ़ने जा रहे हैं ऐसी ही एक थरारक, सत्य और प्रेरणादायी कथा —
महान त्यागी बाबा जुमदेवजी की परमेश्वर-प्राप्ति साधना की!
एक साधक जिसने अपने प्राणों पर खेळ करून, घर-परिवार की जिम्मेदारी निभाते हुए,
कठोर तप, दैवी संकल्प और परमेश्वर की कृपा —
इन सबका अद्भुत अनुभव किया।
🕉️ मंत्र प्राप्ति और संकल्प की शुरुआत
बाबा जुमदेवजी को हनुमानजी का अद्वितीय मंत्र प्राप्त हुआ।
उन्होंने वह मंत्र अपने तक नहीं रखा, क्योंकि सच्ची आध्यात्मिकता बांटना और दूसरों का कल्याण करना है।
उन्होंने अपने भाइयों को बुलाकर कहा —
“यह मंत्र अत्यंत शक्तिशाली है। इससे परमेश्वर प्रसन्न होते हैं।
लेकिन इसकी साधना बहुत कठोर है। गलती हुई तो जीवन पर भी बन सकता है।”
सबने मंत्र पढ़ा, पर डर के कारण कोई साधना के लिए आगे नहीं आया।
तब बाबा जुमदेवजी बोले —
“मान लो एक भाई मर गया और अब हम चार ही रहें।
मेरे परिवार की जिम्मेदारी तुम संभालना।
मैं यह मार्ग बिना पीछे देखे पूरा करूंगा — चाहे जीतूँ या मर जाऊँ।”
यह था उनके अटूट साहस और दृढ़ संकल्प का पहला शिखर क्षण।
🧼 घर स्वच्छ — मन स्वच्छ : साधना की पवित्र तैयारी
परमेश्वर-प्राप्ति का मार्ग केवल मंत्र नहीं है —
यह मन की शुद्धि, घर की पवित्रता और आत्मा की तैयारी है।
२६ नवंबर १९४५, सोमवार की पवित्र भोर।
सूर्योदय से पहले बाबा उठे —
आंखों में निश्चय, मन में शांति, और होंठों पर हनुमान नाम।
उन्होंने घर को अत्यंत पवित्र बनाने की तैयारी शुरू की —
- चुनें से घर का लेप
- हर कोने की सफाई
- दरवाज़ों-चौखटों की धुलाई
- घर में सुगंध और शुद्ध वातावरण
उनके अनुसार —
“घर स्वच्छ तो मन शुद्ध — और मन शुद्ध तो देवता का आगमन निश्चित।”
🛕 हनुमान मंदिर की पवित्र पहाट
स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनकर बाबा मंदिर पहुँचे।
वहाँ दीपमाला हल्के उजाले में चमक रही थी,
वातावरण पवित्र धुंध से भर हुआ था।
बाबा ने —
🕉️ हनुमानजी को पवित्र जल से स्नान कराया
🕯️ कपूर व अगरबत्ती जलाई
📿 मंत्रजप शुरू किया
🔁 २१ प्रदक्षिणाएँ कीं
मंत्र के हर अक्षर में भक्तिभाव,
हर प्रदक्षिणा में समर्पण।
🔱 अखंड 41 दिनों की साधना
इस दिन से बाबा ने प्रतिदिन सूर्योदय से पहले साधना शुरू की।
- मंदिर जाकर पूजा-अर्चना
- घर लौटकर मौन और जप
- दिन में काम
- रात में मनन
41 दिन बिना चूक, बिना आराम — केवल भक्ति।
शरीर थकता था, पर मन कभी नहीं थकता था।
⚡ पहली कठिन परीक्षा — श्रद्धा की परख
देव मार्ग पर चलने वाले को परीक्षा अवश्य मिलती है।
साधना के 21वें दिन बाबा के भाई दौड़ते हुए आए —
“मेरी बेटी को भयंकर बीमारी हो गई है!
तुम चलो… शायद कुछ मदद हो जाए।”
बाबा ने कहा —
“मैं बस हनुमानजी की पूजा करता हूँ, इससे ज्यादा नहीं।”
पर भाई के प्रेम के आगे बाबा उसके साथ गए।
😨 भयावह दृश्य
- पूरे शरीर पर बड़े-बड़े फोड़े
- फोड़े फटकर खून बह रहा था
- खून पर लाल चींटियाँ
- बच्ची तड़प रही थी
यह देखकर किसी का भी मन टूट जाता।
बाबा असमंजस में पड़े —
“क्या यही परीक्षा है? क्या साधना छोड़ दूँ?”
पर उन्होंने दृढ़ निश्चय किया —
“साधना नहीं छोड़ूंगा। चाहे कुछ भी हो।”
बाबा कुछ बोले नहीं, बस चुपचाप लौट आए।
🕯️ प्रार्थना — सच्चे भक्त का आर्त स्वर
अगली सुबह मंदिर में खड़े होकर उन्होंने हनुमानजी से कहा —
“हे हनुमान…
यदि यह परीक्षा है, तो शक्ति भी तू ही दे।
यदि यह मार्ग छोड़ना है, तो मुझे रोक दे।
नहीं तो उस मासूम बच्ची को ठीक कर।”
और बाबा मौन साधना में लीन हो गए।
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🌅 चमत्कार — देवकृपा का पहला संकेत
इतने में तीसरे दिन वही बच्ची
पूरी तरह स्वस्थ होकर आँगन में खेलती दिखी!
- फोड़े गायब
- खून बंद
- चेहरा तेजमय
यह साधारण नहीं था —
यह देव द्वारा साधना की पहली स्वीकृति थी।
🪷 साधना का सफल समापन
41 दिन पूरे होने पर
6 जनवरी 1946, रविवार
बाबा ने साखर का नैवेद्य चढ़ाकर प्रथम साधना पूर्ण की।
केवल 25 वर्ष की उम्र में इतनी कठिन साधना —
यह अलौकिक था।
पर यह अंत नहीं था…
दैवी यात्रा की शुरुआत थी।
🔥 त्रित्राल हवन — अगली साधना
41 दिनों के तप के बाद बाबा को अगला आदेश मिला —
त्रित्राल हवन।
इसमें —
- रात में तीन हवन
- हर हवन में 108 मंत्र
- हर हवन से पहले और बाद में स्नान
- प्रसाद के लिए कढ़ाई (हलवा)
सात दिन लगातार, पूरी रात जागरण और हवन।
घर की स्थिति साधारण थी, पर बाबा ने कहा —
“दिन में मजदूरी करेंगे, जो मिलेगा उससे हवन करेंगे।”
🌙 सात रातों का दिव्य तप
पहला हवन सूर्यास्त पर
दूसरा मध्यरात्रि
तीसरा पहाट 3–5 बजे
दिवस में काम, रात में तप।
कुटुंब भी समर्थन में लगा रहता —
सफाई, रांगोली, प्रसाद, हवन सामग्री…
यह केवल बाबा की साधना नहीं,
पूरा परिवार का तप था।
👁️ पहला दिव्य संकेत
पहली ही रात मध्यरात्रि हवन के समय
धाकटे भाई मारोतराव नींद में चिल्लाए —
“लंगोटियावाले बाबा की जय!”
जागकर उन्होंने बताया —
“मेरे सामने हनुमानजी खड़े थे!
सिर पर चांदी का मुकुट,
हाथ में चांदी की गदा…
वे घर के चारों ओर घूम रहे थे।”
यह स्पष्ट संकेत था —
हनुमानजी स्वयं रक्षा हेतु उपस्थित थे।
साधना को न केवल स्वीकार किया गया,
बल्कि स्वयं ईश्वर ने मान्यता दी।
🌼 सिद्धि के बाद लोकसेवा की शुरुआत
त्रित्राल हवन पूर्ण होते ही
बाबा में दिव्य ऊर्जा, शांति और आत्मविश्वास प्रकट हुआ।
लोग धीरे-धीरे आने लगे —
बीमारी, मानसिक कष्ट, घरेलू समस्या…
बाबा —
- मंत्र
- तिर्थ
- फूंक
- आशीर्वाद
से लोगों को राहत देने लगे।
उन्होंने कभी नाम-प्रसिद्धि नहीं चाही — सिर्फ सेवा।
सच्ची सिद्धि वही है
जो दूसरों के भले में उपयोग हो।
🧭 इस कथा से मिलने वाली जीवन शिक्षाएँ
- श्रद्धा + संयम + निश्चय = दिव्य सफलता
- ईश्वर परीक्षा देता है, पर साथ भी देता है
- मन की पवित्रता ही साधना का आधार है
- त्याग के बिना चैतन्य प्रकट नहीं होता
- जो कठिनाई में भी नहीं रुकता, वही साधक बनता है
🙏 निष्कर्ष
यह कथा केवल आध्यात्मिक नहीं —
मानव की असीम क्षमता का जीवंत प्रमाण है।
बाबा जुमदेवजी सिखाते हैं —
“श्रद्धा + कठोर तप + दृढ़ निश्चय = परमेश्वरी कृपा।”
📌 अंतिम विचार
यदि लक्ष्य परमात्मा है,
तो मार्ग कितना भी कठिन हो —
ईश्वर स्वयं हाथ पकड़कर आगे ले जाता है।
🌸 परमात्मा एक 🙏 सेवा ही साधना 🌸





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